Wednesday 22 February 2017

मैं शायर तो नहीं फिर भी ...

वैसे तो रहती है रूह देह में 
कहाँ देख पाती देह रूह को।

चक्रव्यूह से मैं निकल ना सकी कभी
एक व्यूह काटा दूसरा सामने आ गया।

मुझसे ही दूर खड़ी है जिंदगी
हैरान हूं क्या ही है जिंदगी।

प्रेम कहाँ मिल पाता है सबको 
जिन्हें मिला मुबारक हो उनको|

जो सोचकर किया जाए नादानियाँ होंगी
प्रेम कहाँ सोच-समझकर किया जाता है।

धरती का धैर्य छूटे आकाश की मर्यादा
मौसमों के रंग बदले पर हम न बदलें।

उसको जाना है समझा है तभी तो ख्वाबों में सजाया है
कुछ तो ख़ास बात है उसमें जो वही मन को भाया है|

ये किसका चेहरा किताबों में है मुस्कुराता कौन गुलाबों में है 
किसकी खुशबू से मुत्तर हुई आखिर अब ये कौन मेरे ख्वाबों में है |

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