तुम निस्सीम गगन
दुनिया की सबसे बड़ी छत
पर नहीं दे पाते मुट्ठी भर भी
छांव मुझे
इतना ही बहुत है
कि देते हो आश्वासन
मीठा जल बरसाकर
तुम अपार जलराशि के स्वामी सागर
पर नहीं बुझा पाते मेरी प्यास
इतना ही बहुत है
कि बहाते हो खारे आंसू
हालत पर मेरी |
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