जब
चाँद -सितारों की
तिरछी पड़ती
रोशनी में
दिप -दिप करता था
तुम्हारा चेहरा
शरीर में
आकुल दौड़ती थी
नदी ...
आवाज में
हँसता था आकाश
और हँसी डूबी रहती थी
फूलों में
तब
धूप की फुहारों से भीगे
शरद के दिनों सा
होता था
तुम्हारा प्यार ...|
चाँद -सितारों की
तिरछी पड़ती
रोशनी में
दिप -दिप करता था
तुम्हारा चेहरा
शरीर में
आकुल दौड़ती थी
नदी ...
आवाज में
हँसता था आकाश
और हँसी डूबी रहती थी
फूलों में
तब
धूप की फुहारों से भीगे
शरद के दिनों सा
होता था
तुम्हारा प्यार ...|
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