तुम इंद्र
गौतम
राम
चाहें जिस रूप में रहे
कब समझा है मुझे
कुदृष्टि
शाप
उद्धार
यही रही मेरी नियति
हर बार गलत ठहराई गई मैं
तुम
देवताओं के राजा
धर्म रक्षक
उद्धारक महान बने
और मैं
हर बार
बेचारी अहल्या |
गौतम
राम
चाहें जिस रूप में रहे
कब समझा है मुझे
कुदृष्टि
शाप
उद्धार
यही रही मेरी नियति
हर बार गलत ठहराई गई मैं
तुम
देवताओं के राजा
धर्म रक्षक
उद्धारक महान बने
और मैं
हर बार
बेचारी अहल्या |
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