Saturday 28 July 2012

क्या नहीं?

सादी प्लेन साड़ी से
नयी नदी सी देह को 
पूरी तरह ढांके 
इच्छाओं के  घने..काले 
लहराते बालों को 
जुड़े के शिकंजे में कसे
गले के क्रास से 
हर पल अनुशासित   
आभूषण विहीन 
नख से शिख तक सादी
साँवली-सलोनी 
अट्ठारह वर्षीया 
मासूम सी वह 'नन'
देखते ही मुस्कुरा देती है मुझे 
कूकती है कोयल सी 
अटपटी हिंदी में बात करती है 
सुबह से शाम तक 
अपनी संस्था में चकरघिन्नी बनी 
नन ने सेवा का व्रत लिया है 
-क्या उसकी इच्छा नहीं होती  
किसी का प्रेम पाने  
माँ बनने और  छोटे से अपने घर-संसार की '
पूछ बैठती हूँ एक दिन 
 हँस पड़ती है वह 
'नहीं होती दुनियावी इच्छा
ऐसी साधना का 
अभ्यास करते हैं 
हर समय प्रार्थना करते हैं 
अपना विशेष कुछ नहीं 
सारा संसार अपना है 
क्योंकि सब प्रभु का है|'
जाने क्यों मेरा मन
उसकी बात से पूरी तरह 
सहमत नहीं हो पाता 
सोचती हूँ -रात को जब 
वह खोलती होगी अपना जूड़ा 
जरूर भागती होंगी 
 दिन-भर कैद रहीं 
उसकी आदम-इच्छाएँ |






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