गर्व से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
उसमें है कुछ ऐसा खास
छोड़कर ब्याहता
पुरूष आता है उसके पास
गुस्से से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
सभा-समाज ,रिश्ते-नात में
दूसरी स्त्री
उसमें है कुछ ऐसा खास
छोड़कर ब्याहता
पुरूष आता है उसके पास
गुस्से से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
सभा-समाज ,रिश्ते-नात में
गर्व के साथ होता है पुरूष
पहली स्त्री के साथ
दुःख से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
कि माँ बनने की पूर्णता
देता है पुरूष सिर्फ पहली स्त्री को ही
चिंता से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
कि पुरूष कभी भी छोड़ सकता है
उसका साथ
तनाव से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
कि समाज उसे चालबाज
और पहली स्त्री बाजारू समझती है
वह तन-मन,भावना-विश्वास
सब-कुछ देने के बाद भी
रहती है हमेशा 'दूसरी'ही
'पहली' नहीं हो पाती
ऊपर से स्त्री जाति की
शत्रु समझी जाती है
प्रतिशोध से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
खुद,समाज या पुरूष के प्रति
और अंतत:आत्मघात,अवसाद
या हत्या का शिकार होती है
सोचती हूँ फिर भी ऐसा क्या है
कि हर युग में
दूसरी स्त्री होती है !
पहली स्त्री के साथ
दुःख से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
कि माँ बनने की पूर्णता
देता है पुरूष सिर्फ पहली स्त्री को ही
चिंता से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
कि पुरूष कभी भी छोड़ सकता है
उसका साथ
तनाव से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
कि समाज उसे चालबाज
और पहली स्त्री बाजारू समझती है
वह तन-मन,भावना-विश्वास
सब-कुछ देने के बाद भी
रहती है हमेशा 'दूसरी'ही
'पहली' नहीं हो पाती
ऊपर से स्त्री जाति की
शत्रु समझी जाती है
प्रतिशोध से भरी रहती है
दूसरी स्त्री
खुद,समाज या पुरूष के प्रति
और अंतत:आत्मघात,अवसाद
या हत्या का शिकार होती है
सोचती हूँ फिर भी ऐसा क्या है
कि हर युग में
दूसरी स्त्री होती है !
ranjana
ReplyDeletekabhie maenae ek kavitaa blog par daali thee samay ho to daekhna
http://indianwomanhasarrived2.blogspot.in/2008/07/blog-post_10.html
बहुत खूब |
ReplyDeleteआपकी पोस्ट बुधवार (24-10-2012) को चर्चा मंच पर । जरुर पधारें ।
सूचनार्थ ।
विचारणीय भाव .....यह भी एक खेल है.... जिसमे नुकसान स्त्री का ही है पहली हो या दूसरी........
ReplyDeletealkh sacchayee se bhari prastuti खुद,समाज या पुरूष के प्रति
ReplyDeleteऔर अंतत:आत्मघात,अवसाद
या हत्या का शिकार होती है
सोचती हूँ फिर भी ऐसा क्या है
कि हर युग में
दूसरी स्त्री होती है !
बडा सटीक आकलन किया है।
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