लाल चुनर ओढ़े
रो-रोकर मुरझाईं
सेमल की बेटियां
एक-एक कर
विदा हो रही हैं
बिलख रहा है
सेमल
चार दिन की चाँदनी की तरह
क्यों होती हैं बेटियाँ
क्यों चली जाती हैं एक दिन
पिता को छोड़
कितनी रौनक रहती है
उनके होने से
कितना तो रखती है
सबका ध्यान
करता है हाथ जोड़कर
पवन से प्रार्थना
-सम्भाल के ले जाना
बड़ी सुकुमार हैं मेरी बेटियां
रातो-रात बड़े हो गए
पत्ते पुत्र सांत्वना दे रहे हैं पिता को
हर साल मिलने आएंगी
फूलों-सी उसकी बहनें
सेमल का जी नहीं मानता
आखिर पिता है |
रो-रोकर मुरझाईं
सेमल की बेटियां
एक-एक कर
विदा हो रही हैं
बिलख रहा है
सेमल
चार दिन की चाँदनी की तरह
क्यों होती हैं बेटियाँ
क्यों चली जाती हैं एक दिन
पिता को छोड़
कितनी रौनक रहती है
उनके होने से
कितना तो रखती है
सबका ध्यान
करता है हाथ जोड़कर
पवन से प्रार्थना
-सम्भाल के ले जाना
बड़ी सुकुमार हैं मेरी बेटियां
रातो-रात बड़े हो गए
पत्ते पुत्र सांत्वना दे रहे हैं पिता को
हर साल मिलने आएंगी
फूलों-सी उसकी बहनें
सेमल का जी नहीं मानता
आखिर पिता है |
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
ReplyDelete"स्वस्थ जीवन पर-त्वचा की देखभाल"
आह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
अनु