Tuesday, 19 March 2013

अमलतास




भरे बदन के  
सुंदर पुरूष -सा 
लग रहा है 
अमलतास 
कल तक बिलख रहा था 
सिर-मुंडाए बच्चे सा 
बार-बार फेरता था 
सिर पर हाथ कि 
कब आएँगे 
उसके सुंदर घने बाल 
आज हरी धोती  पर 
ढेर सारा झूमके वाले 
सोने के जेवर पहने 
इतरा रहा है अमलतास 
बुरी नजर से बचा रहे हैं उसे 
काले ,लंबे नजरौटे से फल 
सबके दिन बहुरते हैं 
सच कहती है माँ |

3 comments:

  1. कृष्णा पान्डेय " लूटेरा "19 March 2013 at 15:38

    सुँदर . .बहुत खुब

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.लाइन का स्पेस थोडा बढ़ाना चाहिए.

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  3. वाह......

    क्या अंदाज़ है फूलों को देखने का....
    कहीं हरसिंगार भी है क्या???
    खोजती हूँ...

    अनु

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