Thursday, 10 April 2014

सीख


हर तरह के पौधे हैं
तरह तरह के फूल
आकार-प्रकार कद-काठी
रंग-रूप सब अलग
यहाँ तक कि खुशबू भी
ना कोई ईर्ष्या
ना प्रतिस्पर्धा
ना जोड़-तोड़ ना सांठ-गाँठ
कांट-छाँट भी नहीं
ना कोई जुगत-जुगाड़
ना मान-अपमान
सभी अपना भरपूर देने में जुटे
जी भर कर खिले घास के फूलों को
गुलाब बनने की चाह नहीं
ना कनेर को अमलतास
ना ऊँचाई का अहसास
ना छुटाई का आभास
ना लिंग-भेद ना वर्ग
ना तेज..मध्यम..कम
खुशबू का दर्प
खुलकर जी रहे
मस्ती में झूम रहे
हर तरह के पौधे
तरह-तरह के फूल
जानते हैं शायद कोई नहीं
ले सकता किसी की जगह
सबकी है अलग पहचान
कुछ इनसे ही सीखो

मेरे देश के रचनाकारो |  

1 comment:

  1. प्रकृति से सीखना हमने सीखा ही नहीं...सुन्दर रचना...

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