Monday, 7 April 2014

अमरता


उन्हें अमर हो जाने की चाह है
इसलिए वे साम दाम दंड भेद की
नीति पर चलते हैं
गिरने को तैयार हैं
किसी हद तक
गिराने को तैयार हैं सबको
दिखाने के लिए खुद को
सबसे ऊंचा और विशाल
कुछ भी करने को हैं तैयार
मैं देखती हूँ उनके चेहरे को
जिसकी मधुरता
और मासूमियत
अमरता की बेदी पर
सिर पटक रही है
वे भूल गए हैं इतिहास
कि कोई नहीं हुआ अमर
अमरता की चाह में |

1 comment:

  1. ज़िन्दगी बड़ी होनी चाहिए लम्बी नहीं...ऐसा जीवन भी क्या जीवन है...सुंदर कविता...

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