उन्हें अमर हो जाने की चाह है
इसलिए वे साम दाम दंड भेद की
नीति पर चलते हैं
गिरने को तैयार हैं
किसी हद तक
गिराने को तैयार हैं सबको
दिखाने के लिए खुद को
सबसे ऊंचा और विशाल
कुछ भी करने को हैं तैयार
मैं देखती हूँ उनके चेहरे को
जिसकी मधुरता
और मासूमियत
अमरता की बेदी पर
सिर पटक रही है
वे भूल गए हैं इतिहास
कि कोई नहीं हुआ अमर
अमरता की चाह में |
ज़िन्दगी बड़ी होनी चाहिए लम्बी नहीं...ऐसा जीवन भी क्या जीवन है...सुंदर कविता...
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