Thursday, 10 April 2014

आम-दो कविताएं

एक 
सुंदर सुडौल दिख रहा है 
आम
मंजरियों से भरे 
हजारों बाहों को 
आकाश की ओर उठाए 
किसी अदृश्य को 
धन्यवाद दे रहा है आम
मंजरियों में अभी खुशबू नहीं है
पर उनकी सुंदर नक्काशी 
सुफलों की उम्मीद से भरी है 
जल्द ही महमहाएंगी मंजरियाँ 
दूर-दूर तक फैल जाएगी 
उनकी सुगंध 
प्रसन्न होगा पाखी-मन 
जल्द ही खुलेंगी मंजरियों की 
नन्हीं हरी आँखें 
धीरे-धीरे बड़ी सुंदर और 
सुडौल आकार धारण करती 
और एक दिन यौवन की 
मिठास से भर जाएँगी |

दो 
झर रहे हैं 
हवा के झकझोरने से 
आम के सुनहरे बौर 
धरती पर बिछ गई है 
सोने की कालीन 
फिर भी झूम रहा है आम 
जानता है 
फूल झरे बिना 
नहीं आयेंगे फल 
और बिना फल 
नहीं कहलाएगा वह 
फलराज |


1 comment:

  1. आम के आगमन का संकेत मिल गया...

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