Monday, 5 May 2014

जगदीश चन्द्र श्रीवास्तव की समीक्षा

रंजना जायसवाल का काव्य-संसार
पिछले दो दशकों से सूचना क्रांति के कंधे पर सवार बाजारवाद ने न केवल दुनिया को बदला है,बल्कि उसने स्त्री-विमर्श को भी नयी व्याप्ति प्रदान की है |रंजना की कविताएं आम आदमी की भाषा में विमर्श करती हैं |रंजना ने जीवन से इतने सच्चे व स्वभाविक प्रतीक उठाए हैं कि वह ‘घरनी की चुपकही की तरह बिना कुछ कहे ही काफी कुछ कह देते हैं |चिड़िया और गाय जैसे प्रतीक उठाकर रंजना नारीवादी चिंतन को नया क्षितिज देती हैं |उनकी कविताओं में उनके भीतर की स्त्री अपने नए मुहावरे रचती और शिल्प के नए औजारों से लड़ाती दिखती है |इन कविताओं में क्रांति का बहुत शोर नहीं है ,लेकिन स्त्री की पीड़ा को अनेक रूपों में उठाकर वे बहस करती अवश्य दिखती हैं |उनकी गौरी गाय भी भारतीय स्त्री का प्रतिनिधत्व करती है –
जाऊं भी तो कहाँ
हर कदम पर नया कसाई
धिक्कार कि मुझे माँ कहता है
मानता है धर्म,अर्थ,मोक्ष का आधार
जबकि दूध,संतान
गोबर,मूत्र,मांस,चमड़ा
सब बेचता है |
[कविता -नारीवादी हो रही है गौरी ]
रंजना जायसवाल की दाल-रोटी,मेरी दाई जैसी कविताएँ संवाद धर्मी के साथ संबोधन धर्मी भी हैं |संबोधन के शिल्प से वह कविता में जो वातावरण रचती हैं ,उसके पीछे एक सम्पूर्ण स्त्री प्रतिबिम्बित होती दिखती है |पूरे समाज से जिरह करती स्त्री |’मेरी दाई’कविता में अत्याचारी पति के प्रति भी धर्म निभाने वाली दाई को देखकर वह पूछती हैं –
‘इतना अलग क्यों हैं
स्त्री का धर्म
पुरूष के धर्म से |
[कविता-मेरी दाई]
स्त्री चेतना की सतत उपस्थिति रंजना की कविता को जो विश्वसनीयता प्रदान करती है,वह आज की कविता में एक नया आयाम है ,स्त्री विमर्श का कोई फार्मूला नहीं |
रंजना सपने देखती हैं तो जिंदगी,परिवार,समाज के साथ-साथ स्त्री-पुरूष,जीव-जंतु,पेड़-पौधे ,यहाँ तक कि सारी सृष्टि को खूबसूरत और उत्कृष्ट बनाने के संघर्ष में शामिल दिखती हैं |उनकी स्त्री-संवेदना व प्रकृति-चित्रण का जबाव नहीं |साहित्य से लगभग गायब हो चुके प्राकृतिक बिम्बों को सुंदरता के साथ प्रस्तुत करना उनकी विशेषता है |एक छोटी सी बानगी देखिए -
 स्पर्श
सेमल की कलियाँ
वैसे तो सांवली हैं
पर सूर्य के परस से
वैसे ही लाल हो जाती हैं 
जैसे सूखी-साँवली लड़कियाँ
ससुराल जाकर 
गुलाल हो जाती हैं.

प्राकृतिक उपादानों के माध्यम से मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति रंजना बखूबी कर लेती हैं |उनकी दाल-रोटी कविता को कवि केदारनाथ सिंह अद्भुत कविता मानते हैं ,तो परमानंद श्रीवास्तव अपने आलेख ’कविता में हाटबाजार’ में उसका विशेष जिक्र करते हुए कहते हैं कि –‘रंजना जायसवाल की दाल-रोटी में सरसों-अरहर सम्वाद पिज्जाहट ,बिग बाजार से अलग आख्यान है |ब्रांड होंगे चमत्कार-यहाँ तो दाल-रोटी जीवन का यथार्थ है |
रंजना की कविताओं में ‘प्रेम’ भी एक मुख्य भाव है |उनका मानना है कि कोई क़ानून,धर्म या सामाजिक दबाव किसी के मन में ना तो प्रेम पैदा कर सकता है ,ना दबा सकता है |क्योंकि -
प्रेम
जिंदगी के कागज पर
दिल की मुहर है |



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