Monday 16 February 2015

सुनो लड़की


ओ उदास लड़की
होश सँभालते ही
देखती आई हूँ तुम्हें
तुम हमेशा उदास रहती हो
क्या हुआ जो माँ ने नहीं चाहा तुम्हें
पिता का पा नहीं सकी दुलार
नहीं समझा कभी भाई-बहनों ने
सहोदरा तुम्हें
ऐसा इस देश की हजारों लड़कियों के साथ होता है
सब तो नहीं रहती उदास तुम्हारी तरह
तुम नहीं रहने देती मुझे भी खुश
क्योंकि रहती हो मेरे भीतर
साथ जन्मी..पली-बढ़ी
पढ़ी-लिखी और जी रही हो जिंदगी साथ ही
तुम्हारे ही कारण
मैं बालपन में हमउम्र लड़कियों की तरह
चहक न सकी
किशोर वय में महक न सकी
युवापन में बहक न सकी
नहीं कर सकी किसी से प्रेम
हमेशा अलग-थलग रही सबसे
तुमने कभी सामान्य नहीं रहने दिया मुझे
जाने तुम क्या चाहती हो
जो नहीं मिला कभी तुम्हें
तुम्हारे ही कारण उम्र के तीसरे पहर में भी
मैं अकेली हूँ
तुम समझौतों में विश्वास नहीं करती
जबकि रिश्ते समझौतों से ही बनते हैं
तुम्हें भी चाहत है प्रेम की.. साहचर्य की
निश्छल ..निर्दोष आत्मीय रिश्तों की
जो नहीं मिल सकता इस दुनिया में
इस दुनिया में रहकर
किसी दूसरी दुनिया का सपना देखना
समझदारी तो नहीं
तुम यथार्थ कब समझोगी लड़की
मैं जब भी ललकती हूँ देखकर
सखियों का घर-परिवार
पति-बच्चों रिश्ते-नातों का
सुखी संसार
तुम्हारे होंठों पर कौध जाती है
मोनालिसाई मुस्कान
जो कहती है –जो दिख रहा है
वह नहीं है सच
दिखावा है ..माया है ..भ्रम है  मृगतृष्णा है
कहीं तुम्हीं तो किसी मृगतृष्णा की शिकार नहीं लड़की |


1 comment:

  1. "
    किसी दूसरी दुनिया का सपना देखना
    समझदारी तो नहीं
    तुम यथार्थ कब समझोगी लड़की। "

    सत्य ही लिखा आपने, सम्मानित कवयित्री रंजना जी, यहाँ अनुग्रह का कोई मोल नहीं होता, स्वयं की इच्छाओं का कोई आकाश नहीं होता, हाँ ये बात स्त्री पर अधिक लागु होती है, पर मैं कहता हूँ ये बात हर उस संवेदनशील हृदय पर लागु होती है, जिसके अनग्रह, निवेदनों, अनुभूति, इच्छाओं को सम्बंधित पक्षों द्वारा कभी नहीं दुलारा जाता। "

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