दुखी हैं आम्रवृक्ष
कल शाम की आई आँधी से
कि शुरू हो गया सिलसिला
बौराते ही उनके
अब जब तक रहेंगे वे फूले-फले
आती रहेगी ईर्ष्यालु आँधी
धरती पर मरणासन्न पड़े
मोजरों पर टपक रहे हैं
आम्र-वृक्षों के विवश आँसू
अभी दोपहर तक ये मोजर
चमक रहे थे जिंदगी की
सुनहरी आभा से
चहक रहे थे पूरे कुनबे के
साथ
मह-मह महक रहे थे
हवा सुगंध का निमंत्रण-पत्र
बाँट रही थी गाँव-मोहल्ले
कि हो रही है पेड़ की गोद-भराई
साल-भर बाद आया है यह शुभ अवसर
सब पधारें
बधाई देने पहुँच रहे थे दूर-दूर से
भ्रमर...चींटे ..तरह-तरह के पंक्षी
कोयल गाने लगी थी सोहर
सब-कुछ मंगलमय था
कि आ गयी अचानक यह काली
आँधी
यह आँधी कहीं “सोती राजकुमारी”लोककथा की
बूढ़ी परी तो नहीं
जिसे भूल से नहीं भेजा जा
सका
राजकुमारी के जन्मोत्सव का
निमंत्रण
और क्रोध में दे दिया उसने
नन्ही राजकुमारी को
मृत्यु का शाप,जो बदल गया बाद में
बारह वर्ष की नींद में
या फिर यह कलयुगी डॉक्टर है
कन्या-भ्रूणों को मारकर करती है जो
अपनी ही जाति का नाश !
निठुर आँधी क्या जाने
हर मोजर में छिपा है पूरा
फल
फल में गुठली
गुठली में पूरा पेड़
पेड़ में अनगिनत जीवन
सोचती हूँ मैं
आखिर किसके इशारे से चलती
है
यह आँधी
कहीं आँधी के कंधे पर रखकर
बंदूक कोई अदृश्य तो
नहीं खेलता यह खेल |
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