Monday, 6 April 2015

अग्नि-वर्षा


आकाश ने
यह कैसा जल बरसाया
कि खेतों में खड़े 
गेहूँ जल गए
काला पड़ गया
उनका सुनहरा रंग
कुछ तो ज़मने भी लगे फिर
गेहूँ की सुनहरी आभा से
चमकते किसानों के
चेहरे स्याह पड़ गए
गेहूँ बेटे हैं नाजों से पले
खुद गीले रहकर सूखे में
रखता है जिन्हें खेत
एक पल के लिए भी
खुद से ना अलगाता है
परिपक्व होकर चले जाते हैं
उसे छोड़कर तब भी
उनकी ठूँठ यादों को
जकड़े रहता है कसकर
जब तक उन्हें जलाकर
चलाकर उस पर ट्रेक्टर
एकसार ना कर दिया जाए
अगली फसल के लिए
खेत का दिल आज
आँसुओं से तर है
कि बेटे भरी जवानी में
हो गए जर्जर हैं |

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