तुम्हारी आँखों के
हीरे से झिलमिलाते आईने में
बहुत सुंदर दिखा था मेरा रूप
हैरान थी कि
ये मैं ही हूँ
बचपन से सुनती आई थी
कुछ भी सुंदर नहीं है मुझमें
ये तुम्हारी आँखों का जादू था
कि अनभिज्ञ थी मैं
खुद से
नहीं
जान पाई आज तक |
प्रेम बाहरी आकर्षण नहीं यह तो अंतर्मन की उपज है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
प्रेम बाहरी आकर्षण नहीं यह तो अंतर्मन की उपज है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
अरे ये तो प्रेम छे, प्रेम छे, प्रेम छे।
ReplyDeleteवाह..
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना ..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...