Wednesday 28 September 2016

कविताएं

जिन्दों की क्या कहें
वे मुर्दों को नहीं छोड़ते
हर चीज को वे अपनी
तराजू पर तोलते हैं।
वो सबको भुना लेते हैं
वेे शख्स लाजबाब है
लोग भुन जाते हैं
इसका क्या जबाब है?
मौकापरस्त यूं तो सब हैं
पर उपदेश कुशल ज्यादा हैं।
माँ ना गिनती रोटियां
बेटे को उसकी न नजर लगे
बेटा गिनता माँ की रोटियां
अपनी बीबी के नजर तले।
यारों ने इतना खार खा लिया मुझसे
जिंदगी को मेरे खार बना कर रख दिया।
अब नहीं समय कि इंतज़ार करें
चलो अगली बार ही दीदार करें।
इजहार करके उसको खो दिया 
काश उसे मन में छिपाए रखते।
एक तरफ़ा भी हो तो क्या होता है प्रेम ही 
में पचास पाकर क्या पास नही होते।
सौ आंसू बन गिर जाएंगे कुछ
कुछ जाएंगे मेरे ही संग
ये दर्द जो तेरे नाम के है।
तैरना सीखे बिना नदी में उतर गए
गनीमत रही नदी ने डुबोया नहीं मुझे।
खुश रहो इसलिए ये भी कर दिया 
तुम्हारे लिए तुम्हें ही दूर कर दिया |


1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 30 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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